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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    मंडली के अनुशासन में मसीह का ढंग-तरीका

    गलती करने वाले मंडली के सदस्यों के संग किस प्रकार व्यवहार करना चाहिये इसके सम्बंध में परमेश्वर के लोगों को मत्ती के अठारहवें अध्याय में सृष्टिकर्ता द्वारा दिये गये आदेश को सावधानी के साथ पालन करना चाहिये.ककेप 118.2

    मनुष्य जाति मसीह की सम्पति है जो बेहद कीमत लगाकर खरीदी गई है और उसके साथ उस प्रेम के बंधी है जिसे उसने और उसके पिता ने उस जाति के लिए प्रकट की है.तब हम को एक दूसरे के साथ व्यवहार करने में कितना सावधान होना चाहिये.मनुष्यों को अपने साथियों को शंका की दृष्टि से देखना अनुचित है.गलती करने वाले सदस्यों के प्रति मंडली के सदस्यों को अपने उमंगों तथा इच्छाओं के अनुकरण करने का कोई हक नहीं है.उनको अपराधी के प्रति पक्षपात का कोई जिक्र तक नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार वे दूसरों के दिमाग में बुराई का खमीर फैलाते हैं. किसी भाई या बहिन के विरुद्ध बुरी बुरी रिपोर्ट एक मेम्बर से दूसरे मेम्बर तक पहुँचाई जाती है;अमुक व्यक्ति प्रभु यीशु द्वारा दिये गये आदेशों का पालन करने में रजामंद नहीं है इसी लिए गलतियां होती हैं और अन्याय के कार्य किये जाते हैं.ककेप 118.3

    मसीह ने कहा था, “यदि तेरा भाई तेरा अपराध करें तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा.’’(मत्ती 18:15)उस बुराई का वर्णन किसी दूसरे से न कर.जब एक पुरुष से बात की जाती है और वह किसी और से और फिर एक और से इस प्रकार यह खबर फैलती जाती है और बुराई बढ़ जाती है, और फिर सारी मंडली को दु:ख उठाना पड़ता है.उस मामले को अपने और उसके बीच तय कर लो.यह परमेश्वर का तरीका है.’’झगड़ा करने में जल्दी न करना नहीं तो अन्त में जब तेरा पड़ोसी तेरा मुँह काला करे तब तू क्या कर सकेगा? अपने पड़ोसी के साथ वादविवाद एकान्त में करना और पराये का भेद न खोलना.’’(नौतिवचन 25:8,9) अपने भाई के कसूर का सहन न कर पर उसका भेद न खोलिये इस प्रकार कठिनाइयों को न बढ़ाइये कि सुधारने के बजाय बदला लेने की सूरत नजर आये.उसका सुधार परमेश्वर के वचन के अनुसार होना चाहिये.ककेप 118.4

    क्रोध को द्वेष में पलटने न दीजिये.घाव को पकने न दीजिये कि गंदे शब्दों में वह फूट निकल जिससे सुननेहारों को मन क्लेशित हो.द्वेषपूर्ण विचारों से अपना और उसका मन न मरने दें.अपने भाई के पास जा और नम्रता और स्पष्ट हृदय से उसे बात के बारे में अपने भाई से बात कीजिए.ककेप 118.5

    अपराध कैसा ही क्यों न हो,इससे परमेश्वर का वह तरीका नहीं बदलता जिससे वैयक्तिक हानि तथा मिथ्या बोध का निबटारा होना है.उसी से एकान्त में मसीही भावना में बात कीजिए जो गलती पर है,वह अवसर कठिनाई को दूर करेगा.अपराधी के पास मसीह के प्रेम और सहानुभूति पूर्ण हृदय से जाइये और मामले को दुरुस्त करने की चेष्टा कीजिए.ककेप 118.6

    शांति के साथ समझाये आप के मुंह से क्रोध पूर्ण शब्द न निकले.इस प्रकार उससे बात कीजिए जिससे उसका अंत:करण मान जाय.इन शब्दों को याद कीजिए:“जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा,वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा और अनेक पापों पर परदा डालेगा.’’(याकूब 5:20)ककेप 119.1

    अपने भाई के पास वह औषधि ले जाइये जिससे द्वेष का रोग चंगा हो जाय.उसकी मदद के लिये अपना हक अदी कीजिए.मंडली की शांति तथा मेल की खातिर ऐसा करने को अपना अधिकार एवं कर्तव्य समझिये.यदि वह आप की बात मान ले तो जान लीजिए कि आप ने उसको मित्र स्वरुप जीत लिये हैं.ककेप 119.2

    गलती करने वाले और नुकसान उठाने वाले के बीच मेल-मिलाप होने में समस्त स्वर्ग दिलचस्पी रखता है जब अपराधी अपनी गलती को मान लेता है और उस ताड़ना को जो मसीही प्यार में दी गई है ग्रहण करता और परमेश्वर से और अपने भाई से क्षमा याचना करता है तो स्वर्गीय खुशी से उसका मन भर जाता है वैमनस्य का अंत हो चुका है,मैत्री और भरोसा पुनजीविता हो जाते हैं. प्रेम का तेल अपराध द्वारा सृजित घाव को भर देता है.परमेश्वर का आत्मा दिलों को जोड़ता है और इस प्रकार की संधि पर स्वर्ग में खुशी के गीत गाये जाते हैं.ककेप 119.3

    जब ये जो मसीही सत-संगत में जोड़े गये हैं परमेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि वे न्याय से काम करेंगे,और कृपा से प्रीति रखेंगे और परमेश्वर के संग-संग नम्रता से चलेंगे तो उन पर आशीषों को बौछार होगी.यदि उन्होंने किसी को दु:ख दिया है तो वे पश्चाताप करेंगे तथा यदि किसी से बिना कारण ले लिया हो तो उसे लौटाने का कार्य जारी रखेंगे,एक दूसरे के साथ भलाई करते रहेंगे.यही मसीह की व्यवस्था को पूरा करना है.’यदि वह न सुने, तो और एक दो जनों को अपने साथ ले जा,कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुँह से ठहराई जाए.’’(मत्ती 18:16)अपने साथ उनको ले जाओ कि धार्मिक विचार रखते हैं और अपराधी के साथ उस गलती के विषय में बात करें.हो सकता है कि वह अपने भाइयों कि संयुक्त विनती के सामने झुक जाय.जब वह देखेगा कि वे सब उन मामले में एकता रखते हैं तो उसका मन भी पक्षपात से विमुक्त हो जायगा ‘’यदि वह उनको न माने ‘’तो तब क्या किया जाय? क्या बोर्ड के चन्द व्यक्ति अपराधी को मंडली से निष्कासन करने का दायित्व अपने ऊपर लेवें? जो वह उनकी भी न माने,तो कलीसिया से कह दें.’’पद 1111117. कलीसिया अपने मैम्बरों के प्रति निर्णय करे.’’परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने तो तू वह मंडली की आवाज़ न सुने, यदि वह उसकी बहाल करने की सारी कोशिशों को ठुकरा देवे तब मंडली का दायित्व है कि उसको बिरादरी से खारिज कर दे.तब उसका नाम कलीसिया की रजिस्टर से काट डालना चाहिये.’‘ककेप 119.4