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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अध्याय 10 - मसीह हमारी धार्मिकता

    ‘जो हम अपने पापों को मान लेवें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने को विश्वास योग्य और धर्मी है.’’(1यूहन्ना 1:9)ककेप 87.1

    परमेश्वर चाहता है कि हम अपने पापों को मान लें और उसके सन्मुख अपने ह्दयों को नम्र करें और साथ ही साथ उस पर दयालु पिता की भांति विश्वास रखें क्योंकि वह उन्हें कभी त्याग नहीं देगा जो उस पर भरोसा रखते हैं. हम में से कितने ही लोग दृष्टि से चलते हैं विश्वास से नहीं.हम देखी हुई वस्तुओं का विश्वास करते हैं और उन प्रतिज्ञाओं को धन्य नहीं मानते जो परमेश्वर के वचन में दी गई हैं तो भी इससे अधिक परमेश्वर का अनादर क्या हो सकता है कि हम उसके वचन का विश्वास न करें और यह प्रश्न करें कि क्या परमेश्वर सचमुच में कह रहा है या हमें झांका दे रहा है? ककेप 87.2

    परमेश्वर हमें हमारे पापों के कारण छोड़ नहीं देता. यदि हमसे गलती हो जाये और उसके आत्मा को दुःखी भी करें परन्तु जब हम पश्चाताप करते हैं और नम्र मन से उसके पास आते हैं तो वह हमें भगा नहीं देगा. अड़चनें दूर होनी चाहिये.बुरे-बुरे भाव मन में बढ़ते हैं जैसे घमंड,अभिमान, अधोरता और कुड़कुड़ाहट आदि. ये सब हमें परमेश्वर से दूर करते हैं. इस लिये पापों को मान लेना चाहिये और हृदय में अनुग्रह का प्रभावशाली कार्य होना चाहिये.जो अपने को कमजोर और निराश महसूस करते हैं वे परमेश्वर के मजबूत पुरुष बन सकते हैं और परमेश्वर उसके लिये भला काम कर सकता है. परन्तु उनको उच्च दृष्टिगत से कार्य करना चाहिये,उन के ऊपर स्वार्थहितों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये.ककेप 87.3

    हमें मसीह की पाठशाला में अध्ययन करना चाहिये.सिवाय उसकी धार्मिकता के कोई वस्तु हमें आन्नद की वाचा की आशीषों का अधिकारी नहीं बना सकती है चिरकाल से हमने ऐसे विचारों का पालन किया कि उन्हें प्राप्त करने के लिए हम अपने को योग्य बना सकते हैं. हमारा ध्यान अपनी ओर से दूर नहीं हटा और यह विश्वास रखते रहे कि यीशु तो हमारा जीवित त्राणकर्ता है. हमें हृदय नहीं सोचना चाहिये कि हमारी कृपा तथा सद्गणु हमें त्राण दिलायेंगे;मसीह का अनुग्रह हमारे त्राण की मात्र आशा है. अपने नबी द्वारा परमेश्वर वाचा बांधता है, “दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा.’’(यशायाह 55:7)हमें इस अकेली प्रतिज्ञा पर विश्वास करना चाहिये.जब हम परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हैं, जब हम यीशु के सद्गुणों पर पाप क्षमा करने हारे त्राणकर्ता के नाते भरोसा करते हैं तो जितनी सहायता की आवश्यकता हमें हम वह सब हमको मिलेगी.ककेप 87.4

    हम अपने आप को ऐसा देखते हैं जैसे कि हममें अपने को बचान की शक्ति हो, परन्तु यीशु ने हमारे लिये प्राण दिये क्योंकि हम ऐसा करने को अशक्त थे. उसी में हमारी आशा और हमारी धार्मिकता है. हमें न निराश होना, न डरना चाहिए कि हमारा कोई त्राणकर्ता नहीं है अथवा उसके हृदय में हमारे लिये कोई दया नहीं है. इसी समय वह हमारी खातिर अपना काम कर रहा है और हम को आमंत्रण दे रहा है कि हम अपनी बेबशी में उसके पास आकर त्राण प्राप्त करें. अविश्वास द्वारा हम उसका अनादर करते हैं,यह आश्चर्यजनक बात है कि हम अपने अत्युत्तम मित्र के संग ऐसा व्यवहार करते हैं, हम उस पर कितना थोड़ा विश्वास रखते हैं जो हम को हद तक बचा सकता है और जितने हमें अपने महान प्रेम का प्रमाण दिया है.ककेप 88.1

    मेरे भाइयों, क्या आप आशा रखते हैं कि आप के शुभकर्म आप को परमेश्वर की कृपा के लिये सिफारिश करेंगे और सोचते है कि उसकी बचाने वाली शाक्ति पर भरोसा करने से पहले आप को पाप से स्वतंत्र होना चाहिये? यदि इस प्रकार का संघर्ष आप के मन में हो रहा है तो मुझे भय है कि आपको सामर्थ कभी प्राप्त न होगा बल्कि अंत में निराश हो जाएंगे.ककेप 88.2

    जंगल में जब परमेश्वर ने विषैले सांपों द्वारा विद्रोही इस्राएलियों को डसने दिया तो मूसा को आदेश दिया गया कि वह एक पीतल के सांप को ऊंचा करें और सारे डसे हुओं को हुक्म दे कि उसे देखें और जीवित रहें. परंतु अनेकों ने इस ईश्वरी ककेप 88.3

    औषधिय में कोई सहारा न देखा. मृतक और मरने वाले उनके चारों ओर थे और वे जानते थे कि बिना ईश्वरीय सहायता के उनका भाग निश्चित हो चुका है;परन्तु वे अपने घावों पर रोते रहे, अपने दु:ख दर्द पर शोकित होते रहे और निश्चित मृत्यु पर खेद करते रहे जब तक उनका बल नष्ट न हो गया और आंखे पत्थर न बन गईं जब कि वे तुरन्त चंगा हो सकते थे. ककेप 88.4

    “जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचा किया उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र ऊंचा किया जाय. इस लिये कि जो कोई उस पर विश्वास करे सो नाश न होय परंतु अनन्त जीवन पावे.’’यदि आप अपने पापों से अभिज्ञ हैं तो अपनी सारी शक्तियों को शोक प्रगट करने में न नष्ट करें परन्तु दृष्टि करें और जीए.यशु हमारा एक मात्र त्राणकर्ता है और यद्यपि लाखों जिन्हें चंगा होना चाहिये उसकी अर्पण की गई करुणा को अस्वीकार करेंगे;जो कोई उसके सद्गुणों पर भरोसा करता है नाश होने को नहीं छोड़ दिया जायगा. जब हम बिना मसीह के अपनी लाचार स्थिति को महसूस करते हैं तो हमें हताश नहीं होना चाहिये;हमें क्रूस पर लटकाये हुये और जी उठे मुक्तिदाता पर भरोसा करना चाहिये.हे, लाचार पापग्रसित, निराश आत्मा, देख और जी.यीशु ने वचन दिया है;वह उन सब को त्राण देगा जो उसके पास आते हैं.ककेप 88.5

    यीशु के पास आकर विश्राम और शांति प्राप्त कीजिए. अभी भी आप को यह आशोष मिल सकती है. शैतान यह सुझाव रखता है कि तुम तो लाचार हो और अपने की क्योंकर आशीर्वाद दे सकते हो. यह तो सच है कि आप लाचार हैं. परन्तु यीशु को उसके सामने ऊँचा उठाइये: “मेरी मदद करने को पुनजीवित त्राणकर्ता उपस्थित है, उसी पर मेरा भरोसा है और वह कभी इस बात को सहन नहीं कर सकता कि मैं कठिनाई में पडू. उसके नाम से मुझे जय होती है.वह मेरौ धार्मिकता है और मेरे आनन्द का मुकुट.’’किसी को यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि उसका मामला निरुपाय है क्योंकि ऐसा नहीं है. आप देखेंगे कि आप पापी और अशुद्ध हैं तभी तो आपको त्राणकर्ता की आवश्यकता है.यदि पापों को मान लेने का समय है तो तुरन्त ऐसा कीजिये. ये क्षण सुनहले हैं. “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने को विश्वास योग्य और धर्मी है.” (1यूहन्ना 1:9)जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे क्योंकि यीशु ने स्वयं यह प्रतिज्ञा की है. प्यारा त्राणकर्ता उसकी भुजायें हमें स्वीकार करने के लिये तैयार हैं और उसका प्रेम भरा हृदय हमें आशीर्वाद देने को ठहरा है.ककेप 88.6

    कुछ लोग ऐसा महसूस करते प्रतीत होते हैं कि उन्हें पहिले परीक्षण काल में रखना चाहिये और उन्हें प्रमाणित करना चाहिये और उन्हें प्रमाणित करना चाहिये कि उन का सुधार हो चुका है तब वे उसके आशीर्वाद का दावा कर सकते हैं. परन्तु ये प्यारी आत्मांए उसके आशीषों को लेने का दावा कर सकती हैं उनको उसके अनुग्रह की,मसीह के आत्मा की आवश्यकता है कि उनकी त्रुटियों का उपाय करें अन्यथा उनके अन्दर मसीही चरित्र की नींव नहीं पड़ सकती.यीशु चाहता है कि हम उसके पास जैसे हम हैं उसी हालत में आयें चाहे हम पापो हों या लाचार, आश्रित हों.ककेप 89.1

    पश्चाताप तथा क्षमा ये योशु के द्वारा परमेश्वर के वरदान हैं. पवित्र आत्मा के प्रभावधीन हम पाप के विषय में दोषी ठहराये जाते हैं और क्षमा दान की जरुरत को महसूस करते हैं. सिवाय नम्र हृदयों के कोई क्षमा का अधिकारी नहीं;परन्तु परमेश्वर का अनुग्रह की हृदय के पश्चाताप की ओर फेरता है. वह हमारी सारी दुर्बलताओं से भली भांति परिचित है तो क्यों नहीं वह हमारी सहायता करेगा?ककेप 89.2

    कुछ लोग पश्चाताप और इकरार के साथ परमेश्वर के पास आते तो हैं और यह भी विश्वास करते हैं कि उनके पाप क्षमा किये गये हैं फिर भी जैसा चाहिये परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को अपनाने में असफल रहते हैं.वे यह नहीं देखते कि यीशु सर्वव्यापक सृष्टिकर्ता है;और वे अपनी आत्माओं को उसके हाथ में सौंपने के लिये तैयार नहीं होते, और न उस पर विश्वास करते हैं कि अनुग्रह का कार्य जो उनके हृदयों में शुरु किया गया है उसके वह समाप्त भी करेगा. जब वे सोचते हँकि वे अपने तई परमेश्वर को सौंप रहे हैं फिर भी उसी समय उनके मन में आत्म-निर्भरता की भावना प्रबल रहती है.कुछ पुण्यशील आत्माएं भौ हैं जो आंशिक रुप में परमेश्वर पर भी भरोसा रखती है और आंशिक रुप में अपने पर भी.वे अपनी सुरक्षा के लिये परमेश्वर की शक्ति की ओर नहीं देखते परन्तु प्रलोभनों से बचने के लिये अपनी सतर्कता पर और परमेश्वर के समक्ष ग्रहणयोग्य होने के लिये विशेष कर्तव्यों के पालन करने पर भरोसा करते हैं.इस प्रकार के विश्वास में कोई विजय नहीं है. ऐसे मनुष्यों के परिश्रम का कोई फल नहीं होता;उनकी आत्माएँ सदैव बंधन में रहती हैऔर उनको कभी विश्राम नहीं मिलता जब तक उनके भार यीशु के चरणों में नहीं अर्पण कर दिये जाते.ककेप 89.3

    निरंतर सतर्कता और सच्ची भक्ति की आवश्यकता है, परन्तु ये स्वभावत: ही आवेंगी. जब आत्मा विश्वास द्वारा परमेश्वर की शक्ति से सुरक्षित रहती है, हम कुछ भी नहीं कर सकते.हमको अपने स्वयं पर और शुभ कार्यों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करना चाहिये; जब हम पापी दोषी जीव मसीह के पास आते हैं तो हम उसके प्यार में विश्राम पाते हैं. परमेश्वर उन सब को जो उसके पास क्रूस पर चढ़े हुये सृष्टिकर्ता पर विश्वास करते हुये आते हैं स्वीकार करेगा. प्यार उनके हृदय मे उपजेगा, आनन्द की तीव्र भावना नहीं परन्तु सदैव रहने वाला शांतिमय विश्वास उत्पन्न होगा.प्रत्येक भार हल्का हो जाता है क्योंकि वह जुआ जा मसीह रखता है सरल है. कर्त्तव्य एक आनन्द बन जाता है और बलिदान भी सुखमय हो जाता हैं. वह रास्ता जो पहिले अंधकार में छिपा हुआ मालूम होता था अब धार्मिकता के प्रकाश से प्रकाशमान हो जाता है,यही प्रकाश में चलना कहलाता है जैसा मसीह प्रकाश में है.ककेप 89.4

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