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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    उच्च आत्मिक आदर्श के लिए प्रयल

    प्रेम की शुद्धता,आत्मा को ऊँचे आदर्श तक पहुंचायेंगे.अत: ईश्वरीय बातों का ज्ञान बढ़ेगा ताकि यह थोड़ी ही भरपूरी से सन्तुष्ट न हो लें.बहुत से मसीहियों को आत्मिक शक्ति का कुछ भी अनुभव नहीं यद्यपि वे इसे प्राप्त कर सकते हैं.यदि उनके हृदय में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने की लालसा, सत्साह और आकांक्षा हो जिस प्रकार वे सांसारिक और नष्ट होने वाली वस्तुओं के लिए रखते हैं.अधिकांश लोग जो केवल मसीही कहलाने से ही सन्तोष करते हैं आत्मिक रुप से बौने रहने में संतुष्ट रहते हैं.वे ईश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करने को अपने जीवन में प्राथमिकता नहीं देते अत:भक्ति उनके लिए एक छिपा हुआ रहस्य है जिसे वे समझ नहीं सकते.वे अपने व्यावहारिक ज्ञान से मसीह को नहीं जानते.ककेप 244.1

    ऐसे स्त्री पुरुषों को जो अपनी बौने की सी दशा में सन्तुष्ट हैं और ईश्वरीय बातों में लाचार हैं उन्हें स्वर्ग पर, ऊंचे पर गवाही के लिए भेज दिया जाये, जहां पवित्रता अपनी पूर्ण सिद्धता में बना रहता है.प्रत्येक आत्मा प्रेम से भरपूर,प्रत्येक चेहरा आनन्द से झलकता और मधुर संगीत से मेम्ने की स्तुति करता है.और उन सन्तों के मुख पर मेम्ने की जो सिंहासन पर विराजमान है अगम्य ज्योति की किरणें झलकती हैं.और तब उन्हें ज्ञात होगा कि उस अनुभव में कितना सुख और आनन्द है जिसे वे ईश्वर से प्राप्त करते है जितना अधिक उनमें यह अनन्त आनन्द का विस्तार होता है उतना ही अधिक वे उस अगम्य महिमा के स्त्रोत्र से अवर्णनीय आशीष प्राप्त करते हैं.क्या में पूछ सकती हूँ कि ऐसे लोग उस स्वर्गीय आनन्द में सम्मिलित हो सकते और उस मधुर संगीत में भाग ले सकते और उस पवित्र महान उज्वल महिमा को सह सकते जो ईश्वर और मेम्ने की है.अजी,नहीं.उनके लिए तो इतना अधिक समय बढ़ाया गया कि वे स्वर्ग की भाषा सीख लेते और उस सड़ाहट से छुट कर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती हैं,ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ.’’(2पतरस 1:4)परंतु वे अपनी बुद्धि और सारी शक्ति को केवल अपने स्वार्थी धन्धे में ही लगाते हैं, वे ईश्वर की सेवा स्वतंत्र रुप से करने की तत्पर नहीं होते.सांसारिक इच्छाएं उनके जीवन में प्रथम स्थान रखती है अत: वे अपनी सारी शक्ति उसी में लगा देते हैं और ईश्वर की बातों का बहुत कम विचार करते हैं.क्या ऐसों को उस अन्तिम निर्णय से पहले ही नहीं बदल जाना चाहिए? कि जो पवित्र है वह पवित्र बना रहे और जो अशुद्ध हैं वह अशुद्ध बना रहें ‘’ऐसा समय आ रहा है.ककेप 244.2

    वे जिन्होंने अपने आप को आध्यात्मिक आनन्द के अभ्यास से निपुण बना लिया है वे वही हैं जो स्वर्ग को उठाए जाएंगे और स्वर्ग की देदीप्यमान महिमा और पवित्रता से चकित नहीं होंगे.आपको भले ही कला का अच्छा ज्ञान हो,विज्ञान से परिचित हो,संगीत में निपुण हो, और हस्तलेख में आपका शिष्टाचार आप के साथियों की पसंद हो, परन्तु इन सब का उस स्वर्ग की तैयारी से क्या सम्बन्ध? इसके द्वारा तो आप ईश्वर के न्याय के सम्मुख नहीं बच सकते.ककेप 244.3