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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    आपकी योग्यता किसी आवश्यकता को पूर्ण करेगी

    परमेश्वर की भारी योजना में प्रत्येक के लिये काम करने को है. जिस की जरुरत नहीं होती उसका वरदान भी नहीं होता मान लो कि योग्यता छोटी सी है फिर भी परमेश्वर के पास उसके लिये एक स्थान है और वही योग्यता यदि ईमानदारी के साथ उपयोग में लाई जाय तो वह यथोचित कार्य करेगी जिसे परमेश्वर चाहता है. गरीब झोंपड़ी के निवासी की योग्यता की आवश्यकता है कि घर-घर जाकर प्रचार करे. वह इस काम में अधिक योग्यता रखने वालों से अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है.ककेप 62.1

    जब मनुष्य अपनी शक्तियों को परमेश्वर की आज्ञानुसार उपयोग करते हैं तो उनकी योग्यता में उन्नति और दक्षता में वृद्धि होगी और उनको खोये हुओं को ढूंढने में परमेश्वर की ओर से बुद्धि-प्राप्त होगी. परन्तु जब कलीसिया के सदस्य ईश्वर की ओर से जो दूसरों के प्रति दायित्व दिया गया. उसके प्रति उदासीनता प्रगट करें तो स्वर्ग के खजाने को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? जब अपने को मसीही कबूल करने वाले अंधकार में पड़े हुओं को प्रकाशित करने के दायित्व को महसूस नहीं करते,जब वे अनुग्रह और ज्ञान देना बन्द कर देते हैं तो उनका विवेक कम हो जाता है.वे स्वर्गीय वरदान के सदगुणों के महत्व को खो बैठते हैं और स्वयं उसका मूल्यांकन न कर सकने के कारण दूसरों के पास इसके महत्व को बतलाने का जो दायित्व है उसे अनुभव नहीं कर पाते हैं.ककेप 62.2

    विभिन्न मुहल्लों में हम बड़ी-बड़ी कलीसियाओं को इकट्ठा होते देखते हैं.उनके सदस्यों ने सत्य का ज्ञान प्राप्त किया है. उनमें से बहुत से जीवन वचन को सुनकर दूसरों को प्रकाश दिये बिना सन्तुष्ट रह जाते हैं. वे काम की उन्नति के लिये कोई दायित्व महसूस नहीं करते न आत्माओं के त्राण में कोई उत्साह प्रकट करते हैं.वे सांसारिक बातों में बहुत जोशीले हैं, परन्तु अपने धर्म को व्यवसाय में उपग नहीं लाते. वे कहते हैं, ‘‘ धर्म तो धर्म है और व्यवसाय व्यवसाय है.’‘ वे विश्वास करते हैं कि प्रत्येक का विशेष स्थान है परन्तु कहते हैं, ” उनको पृथक हो रहना चाहियेककेप 62.3

    अवसरों की लापरवाही करने और विशेषाधिकारों का अनुचित उपयोग करने से इन कलीसियाओं के सदस्य,’’हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में, ‘‘ नहीं बढ़ रहे हैं.(2पतरस 3:15)इस लिये वे विश्वास में दुर्बल, ज्ञान में हीन और अनुभव में नन्हें बालक है. सत्य में उनकी जड़े मज़बूत नहीं हैं. यदि वे इसी प्रकार रहे तो अंतिम दिनों के धोखों से व सचमुच धोखा खायेंगे क्योंकि उनको कोई आत्मिक दृष्टि प्राप्त न होगी जिससे सत्य व असत्य में अन्तर कर सकेंककेप 62.4