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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    जब अनुचित...मांग की जाती है

    जब इस बात का निर्णय करना है कि क्या पत्नी को अपने पति की मांग की पूर्ति करनौ अवश्य है? विशेषकर उस समय जब उसे विदित है कि पति बुरी लालसाओं के वश में है;और उस समय जब कि अपना विवेक यह कहता है कि ऐसा करने से उस देह का नाश होता है जिसे परमेश्वर ने दिया है कि पवित्र और ग्रहणयोग्य बलिदान निमित्त उसकी सुरक्षा की जावे.ककेप 194.3

    जो प्रेम पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन का हनन करके पति की पाश्विक लालसाओं की पूर्ति करने की अग्रसरी करता है वह सच्चा और शुद्ध प्रेम नहीं है.यदि पत्नी में वास्तविक प्रेम और सद्बुद्धि है तो वह अपने पति के मन को लालसापूर्ण प्रवृतियों से हटाकर मनोरंजक आध्यात्मिक साधनों द्वारा आत्मिक विषयों की ओर आकर्षित करेगी.वह अपने पति को विनम्र भाव से आग्रह करेगी कि अनुचितरुप में विषय वासनापूर्ण लालसाओं की पूर्ति करके वह अपने शरीर का निरादर नहीं करेगी.हो सकता है कि उसके इस कथन पर पति क्रोधित भी हो जावे.वह बड़े विनम्र और दयालु भाव से अपने पति को स्मरण दिलाएगी कि उसके समस्त व्यक्तित्व पर प्रथम अधिकार परमेश्वर का है.वह इस अधिकार की अवहेलना न करेगी क्योंकि न्याय के दिन वह इससे प्रत्युत्तर की उत्तरदायी होगी. ककेप 194.4

    यदि वह अपने प्रेम के स्तर को श्रेष्ठ बनाए रखे जिसके फलस्वरुप पवित्रता एवं आदर के साथ उसके स्त्रीत्व की मर्यादा की निर्मलता को सुरक्षा हो सके तो वह अपने न्याय युक्त प्रभाव के द्वारा पति को पवित्र करते हुए अपने सेवा-कार्य को पूरा करेगी. इस प्रकार वह स्वयं अपनी एवं अपने पति,दोनों को रक्षा करके दुगुनी सेवा करेगी.इस प्रकार के नाजुक औरकठिन कर्य निमित्त बुद्धि और धीरज के साथ ही साथ नैतिक साहस की बड़ी आवश्यकता है.सामर्थ और अनुग्रह की प्राप्ति प्रार्थना के द्वारा हो सकती है.हृदय का सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त प्रेम ही है केवल परमेश्वर और पति से प्रेम हो सत्य व्यवहार के आधार हो सकते हैं.ककेप 194.5

    जब पत्नी सारी बातों में पति का इच्छापात्र बनकर तथा अपने विवेक,मर्यादा एवं व्यक्तित्व की आहुति देकर अपनी देह तथा मस्तिष्क को उसके अधीन कर चुकती है तो वह अपने पति के उत्थानार्थ उस पर जबरदस्त प्रभाव डालने का सुअवसर को सदा के लिए खो बैठती है.अपने अचल स्वभाव के द्वारा वह पति के हठी स्वभाव को नम्र बना सकती है.अपने पवित्र प्रभाव के द्वारा पति को प्रभावित करके उसे कामाभिलाषी होने के बदले ककेप 195.1

    वह हृदय जिसका अनुग्रह द्वारा परिवर्तन नहीं हुआ इन्द्रियवश कामनाओं में फंसकर निम्न कोटि का बन जाता है, ऐसे मन को ऊंचे स्तर पर लाने के लिए प्रभाव अति महत्वपूर्ण हो सकता है.जब किसी पति के प्रेम का आधार पाश्विक लालसाएँ हो हैं अथवा वे ही उसके व्यवहार पर अपना प्रभुत्व जमाती हैं तब पत्नी यदि उनकी पूर्ति में अपना सहयोग दे तो वह अपने ऊँचे आदर्श को त्यागती है.ऐसा करने से वह अपने पति के जीवन को पवित्र बनाने वाला प्रभाव न डालकर परमेश्वर को भी अप्रसन्न करती है.यदि उसकी यह भावना हो कि यह उसका कर्तव्य है कि वह बिना प्रतिरोध अपने पति की विलास पूर्ण लालसाओं को तृप्त करती है तो उसने परमेश्वर और पति प्रति अपने कर्तव्य को नहीं पहिचाना है.ककेप 195.2

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