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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अध्याय 45 - हमारे बालकों की उचित शिक्षा और अच्छा अनुशासन

    वर्तमान संसार का प्रभाव नौजवानों को अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति और अपनी इच्छा के अनुसार चलने की ओर प्रेरणा देता है.शैतान एक चालक अथक और विनाशकारी दुश्मन है.जब तरुण को कष्ट पहुंचाने के लिए असावधानी से कोई शब्द कहे जावें,चाहे वे उसकी चापलूसी के लिए हो अथवा पाप के प्रति घृणा भाव को हलका करने के लिए शैतान उस अवसर से लाभ उठाकर दुष्ट बीज के अंकुरित होने और जड़ पकड़ने में सहायक होता है कि वह फलदायी हो जावे.कई माता पिताओं ने आपने बालकों को गलत आदत बनाने दी है जिनके निशान उनके समस्त जीवन पर प्रगट होते हैं.इसका दोष माता-पिता पर है.ये बालक मसीही होने का दावा तो करें पर उनकी आदतों के सुधार कार्य के सम्बन्ध में हृदय पर अनुग्रह के प्रभाव बिना उनकी विगत आदतें उनके अनुभव में प्रगट होंगी.उनका चालचलन वहीं होगा जो उनके माता-पिता ने उन्हें बनाने दिया है.ककेप 248.1

    माता-पिता अपने बच्चों का शासन करें,उनकी अभिलाषाओं को सुधारें,उन्हें वश में रखें, जिसके बिना अपने भयानक क्रोध के दिन परमेश्वर उन को अवश्य नाश करेगा.और वे माता-पिता जिन्होंने अपने बच्चों को नहीं सुधारा कदापि-निर्दोष नहीं ठहरेंगे.ककेप 248.2

    परमेश्वर के सैनिक विशेषकर अपने बच्चों का शासन करें.मेरा अनुभव है कि अपने घर का शासन किए बिना वे मण्डली का न्याय नहीं कर सकते.प्रथम वे अपने घर का उचित प्रबन्ध करें तब उनका न्याय आदरनीय ठहरेगा.और मण्डली पर उनका प्रभाव पड़ेगा.ककेप 248.3

    प्रत्येक बालक यदि रात को घर में अनुपस्थित हो तो लौटने पर उसका लेखा दे.माता-पिता को यह मालूम होना चाहिए कि वे किस संगति में रहते हैं या सन्ध्या किस परिवार कुटुम्ब में बिताते हैं.ककेप 248.4

    परमेश्वर ने बच्चों से व्यवहार के संबंध में प्रभु यीशु के द्वारा जो बुद्धिपूर्ण योजना बनाई है उससे बढ़कर किसी मानव के तत्व ज्ञान ने नहीं खोज निकाला है.सृजनहार को छोड़ कौन बालकों को अपने लोहू से मोल लिया है उसके अतिरिक्त कौन उनके हित में अधिक दिलचस्पी ले सकता है.यदि परमेश्वर के वचन का योग्य अध्ययन किया जावे और विश्वासयोग्य रूप में माना जावे तो बालकों की दुश्चरित्रता पर आत्म वलेश में कमी हो जावेगी.ककेप 248.5

    बालकों के कुछ अधिकार हैं जिन्हें माता-पिता को जानकर उनका आदर करना चाहिए.उन्हें योग्य शिक्षा और प्रशिक्षण कीआवश्यकता है जिसके द्वारा वे उपयोगी सम्मानित,समाज प्रेम के पात्र बनकर आगामी भविष्य के विशुद्ध और पवित्र समाज में अपना स्थान पा सकें.बालकों को अपने वर्तमान और भविष्य दोनों के कल्याण के विषय में शिक्षा देनी चाहिए. ककेप 249.1

    पवित्र वचन के आदर करने और आज्ञाकारी होने का दावा करने वाले अनेक पुरुष स्त्री बहुधा,उसके आदर्श मान की पूर्ति में असफल हो जाते बालकों के प्रशिक्षण में परमेश्वर की प्रकट इच्छा के बदले वे अपने ही बिगड़ी हुई इच्छा का पालन करते हैं.इस कर्तव्य विमुखता के परिणाम स्वरुप हजारों आत्माएं नाश हो जाती हैं.बालकों के उचित शासन हेतु पवित्र वचन में उपयुक्त नियम हैं.परमेश्वर के इन आदेशों के अनुकूल यदि माता-पिता शिक्षा कार्य में लग जाते तो वर्तमान समय में कार्य क्षेत्र में एक भिन्न प्रकार के युवक वर्ग देखने में आता.परन्तु बाइबल पढ़ने और उसके आदेशों पर चलने का दावा करने वाले अनेकों माता-पिता अपने बच्चों को बाइबल की शिक्षा दे रहे हैं.ककेप 249.2

    हम माता-पिताओं की दु:खमय वाणी सुनते हैं जो अपनी सन्तान की चाल के कारण विलाप कर रहे हैं.उनको इस बात का तनिक भी बोध नहीं है कि उनके बालकों के विनाश का कारण उनका भ्रमात्मक प्रेम ही है तथा उनका सन्ताप का मुख कारण उनकी निश्चन्तता ही है. उनको इस बात का बोध नहीं है कि अपने बालकों को सुयोग्य आदतों बनाने के प्रशिक्षण कार्य का उत्तरदायित्व उनको परमेश्वर की ओर से दिया गया है.ककेप 249.3

    मसीही बालक प्रत्येक सांसारिक आशीष की अपेक्षा ईश्वर के भय मानने वाले माता-पिता के प्रेम और सम्मान की अधिक लालसा करेंगे.वे अपने माता-पिता से प्रेम करते हुए उनका सम्मान करेंगे.अपने माता-पिता को किस प्रकार प्रसन्न रखा जाना, यह विषय उनका आजीवन प्रमुख अभ्यास होना चाहिए.इस शासन के लिए उचित प्रशिक्षण नहीं पाया है.माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य के बोध से अभिज्ञ हैं.बहुधा देखने में आता है कि उनके माता-पिता कितना भी कुछ क्यों ने करें वे उनके प्रति सदा कृतघ्नता का मान प्रदर्शित करते हैं, और उतना ही कम उनका आदर करते हैं.ककेप 249.4

    अधिकतर बालकों के भविष्य का आनन्द माता-पिता अपने हाथ ही में रखते हैं.अपने बालकों के चरित्र निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य उन्हीं के कन्धों पर हैं.बालकपन की दी हुई शिक्षा जीवन पर्यन्त उनके साथ रहेगी.माता-पिता बीज बोते हैं जो अवश्य अंकुरित होकर भला या बुरा फल लाएगा.वे अपने बालकों को या तो आनन्द या दु:ख के लिए सुसज्जित करते हैं.ककेप 249.5

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