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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    “चाहे धन सम्पत्ति बढ़े तौभी उस पर मन न लगा.’‘

    दशमांश की विशेष नीति का स्थापन एक सिद्धांत के ऊपर हुआ था जो परमेश्वर की व्यवस्था के समान सुदृढ़ है. दशमांश की नीति यहूदियों के लिये एक वरदान थी अन्यथा परमेश्वर उनको कभी यह नियम न देता. इसी प्रकार यह उनको भी एक वरदान सिद्ध होगा जो उसका अंत के समय तक पालन करेंगे.ककेप 79.1

    वे कलीसियाएं जो परमेश्वर के कार्य को सम्भालने में सबसे अधिक नियमशील और उदार हैं वे ही आत्मिक रुप सब से अधिक फलती फूलती हैं मसीह के शिष्य की सच्ची उदारता उसके और उसके स्वामी के हितों में अनुकूलता दिखलाती है.यदि धनसंम्पत्ति वाले यह महसूस करें कि वे प्रत्येक रुपये के लिए जिसे वे खर्च करते हैं परमेश्वर के सामने जिम्मेवार हैं तो उनकी कल्पित आवश्यकताएं बहुत कम हो जायंगी.यदि अन्त: करण जीवित हो तो वह क्षुधा को तृप्ति करने के लिए व्यर्थ सामग्री के प्रति और अभिमान,माया तथा मन बहलाव की बातों से प्रीति रखने के प्रति और परमेश्वर के उसे रुपये उड़ा देने की जिस के विरुद्ध उसकी सेवा में व्यय होना चाहिये था साक्षौ देगा.जो अपने स्वामी की सम्पत्ति को नष्ट करते हैं उन्हें अपने कार्य के लिए मालिक को कभी न कभी हिसाब देना होगा.ककेप 79.2

    यदि नाम के मसीही अपनी देह के संवारने में तथा अपने घरों के सौंदर्य को बढ़ाने में अपने धन का न्यूनांश व्यय करते और अपनी मैज़ के अतिव्यय स्वास्थ्य नाशक द्रव्य पदार्थ में कम पैसा उड़ाते तो वे परमेश्वर के खजाने में बड़ी-बड़ी रकमें डाल सकते.इस प्रकार वे अपने त्राणकर्ता का अनुकरण करते जिसने स्वर्ग अपनी दौलत, अपनी महिमा त्याग कर हमारी खातिर कंगाल बन गया ताकि हमें अनन्त धन प्राप्त हो सके.ककेप 79.3

    परन्तु बहुत से लोग जब वे संसार की दौलत इकट्ठा करने लगते है यह हिसाब लगाते हैं कि कितनी देर के बाद उनके हाथ में एक खासी रकम जमा हो जायगी.अपने लिए धन संचय करने को चिन्ता में वे परमेश्वर की ओर धनाढय होने में असफल होते हैं. उनकी दानशीलता उनके धनसंचय के साथ कदम व कदम नहीं चलती.जैसे उनकी लगन धन के लिए बढ़ती जाती है वैसे उनकी प्रीति उनके (खजाने ) धन से गठ जाती है.उनकी सम्पत्ति की वृद्धि धन प्राप्त करने की इच्छा को तब तक प्रोत्साहन देती है जब तक कि कुछ लोग यह न सोचने लगे कि दशमांश देना एक कठोर तथा अनुचित कर है. ककेप 79.4

    प्रेरणा ने कहा है, ‘’चाहे धन सम्पत्ति बढ़े तौभी उस पर मन लगाना. “(भजनसंहिता 62:10)बहुतों ने कहा है: ‘’यदि मैं अमुक व्यक्ति की भाँति धनवान होता तो मैं परमेश्वर के खजाने को अपने दानों से भर देता.मैं अपने धन से और कुछ न करता सिवाय उसे परमेश्वर के कार्य को आगे बढ़ाने में उपयोग करने के.’’इन में से कुछ लोगों को परमेश्वर ने धन देकर जाँच की है परन्तु धन के साथ-साथ भयंकर प्रलोभन भी आ मौजूद हुआ और उनकी दानशीलता के उनके दरिद्रता के दिनों से भी बहुत कम हो गई,अधिक धन प्राप्ति की अभिलाषा में उनके मन व ह्दय डूब गये और वे मूर्तिपूजा के पाप में पड़ गये.ककेप 79.5