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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    तम्बाकू एक धीमा विष

    तम्बाकू धीमा, धोखादेह तथापि अत्यन्त घातक विष है.जिस शक्ल में भी उसका प्रयोग किया जाय उसका शरीर रचना पर बुरा असर पड़ता है;वह और भी खतरनाक है क्योंकि उसका प्रभाव धीर-धीरे होता है और प्रारम्भ में मुश्किल से पता लगता है.प्रथम वह नाड़ियों को उत्तेजित करता है फिर पंगु बना देता है.इससे मस्तिष्क निर्बल तथा धूमिल हो जाता है.अकसर वह नाड़ियों पर नशीली मदिरा से भी शक्तिशाली प्रभाव डालता है,यह अति धूर्त है और उसके प्रभाव को शरीर रचना से निकालना कठिन है.उसका प्रयोग तेज मदिरा की और उत्तेजना करता है और अनेक परिस्थितियों में मदिरापान की आदत की बुनियाद डालता है. ककेप 300.6

    तम्बाकू का प्रयोग कष्टदायक,मँहगा तथा गंदा है और पीने वाले को अशुद्ध करता तथा दूसरों को अप्रसन्न करने वाला है.ककेप 301.1

    बालकों तथा युवकों को तम्बाकू का प्रयोग अकथनीय हानि पहुंचा रहा है.लड़के तम्बाकू का इतेमाल शुरु के सालों से करने लगते हैं.जब आदत उस तरह बन जाती है जिस समय देह व मस्तिष्क विशेषकर उसके प्रभाव के ग्रहणशील होते हैं तो वह शारीरिक बल को क्षति पहुंचाता, देह को ठिंगना,मस्तिष्क को अचेत करता तथा आचरण को भ्रष्ट करता है.ककेप 301.2

    तम्बाकू के लिये प्रकृति में कोई स्वाभाविक क्षुधा नहीं होती जब तक पैत्रिक रुप में न प्राप्त हुआ हो,ककेप 301.3

    चाय तथा कफी के सेवन से तम्बाकू की इच्छा होती है.ककेप 301.4

    गरम मसाले के साथ तैयार किया हुआ भोजन आमाशय को प्रकुपित करता, रक्त अशुद्ध करता है और तेज उत्तेजिकों के लिये राह तैयार करता है.ककेप 301.5

    अत्यन्त मसालेदार मांसाहार और चाय व कांफी, जिन्हें कुछ माताएं अपने बालकों को खाने पीने के लिये प्रोत्साहन करती हैं, उनके लिये राह तैयार करते है कि वे तेज उत्तेजिकों जैसे तम्बाकू की इच्छा करें. तम्बाकू का प्रयोग क्षुधा को मदिरा के लिये प्रोत्साहन करता है.ककेप 301.6