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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    भौतिक के निमित्त माता की सामर्थ

    माता के सेवा क्षेत्र नम्र हो पर पिता के सहयोग से उसका प्रभाव चिरस्थायी हो जाता है.संसार में भलाई करने की सामर्थ में माता का स्थान परमेश्वर से दूसरा है.ककेप 202.3

    एक मसीही माता अपने बालकों के चहुं ओर जो भय उपस्थित है उनको देखने के लिए सदैव सतर्क रहती है.वह अपनी आत्मा को पवित्र वातावरण में शुद्ध रखेगी.पवित्र वचन के प्रकाश में वह अपने मनोभाव एवं सिद्धान्तों को ऐसा क्रमवश रखेगी कि वह उसके मार्ग में सदा उपस्थित रहने वाली छोटी मोटी परीक्षओं से परे रहकर अपना कर्तव्य पूरा कर सकेककेप 202.4

    बालकों को बोधज्ञान तीव्र रहता है.वे माता-पिता को प्रेमवाणी तथा अधीर उद्वेगात्मक आज्ञा में, जिससे बालक के हृदय की प्रेममय आर्द्रता सूख जाती हैं अंतर कर सकते हैं.एक सच्ची मसीहो माता अपने चिड़चिड़ापन और सहानुभूति पूर्ण प्रेम के अभाव द्वारा बच्चों को अपने सामने से निकलने देगी. ककेप 202.5

    माताओं इस बात के लिए सजग हो जाइए कि आप का नमूना और प्रभाव बालकों के चरित्र और भविष्य पर प्रभाव डाल रहा है.आप अपने उत्तरदायित्व को ध्यान में रखकर संतुलित मन एवं शुद्ध चरित्र को विकसित होने दीजिए जिससे केवल सत्य अच्छाई और सुन्दरता प्रतिबिम्बित हो.ककेप 202.6

    अनेकों पति और बालक अपने घर में कोई आकर्षण नहीं पाते.वे घर में निरन्तर कुड़कुड़ाहट और घुड़कियाँ सहकर घर के बाहर निषिद् स्थानों में कहीं शान्ति और मनोरंजन खोजते हैं.पत्नी एवं माता अपने घर धन्धे के कार्य एवं चिन्ताओं में व्यस्त रहकर बहुधा छोटी सौजन्यता पूर्ण बातों पर विचार नहीं कर पाती जिनसे पति एवं बालकों के लिए घर एक आनन्दमय स्थान बन जावे.जब वह भोजन या वस्त्र बनाने में संलग्न हैं तब पति और पुत्र घर में मानों अनजाने की भांति बाहर भीतर आ जा रहे है.ककेप 202.7

    यदि माता अपने पहिनने, ओढ़ने में लापरवाह हो तो वह अपने बालकों के सन्मुख वैसा ही नमूना रखती है.कई माताएं समझती हैं कि पोशाक चाहे मैली कुचैली हो घर में सब ठीक है.ऐसी माताएं अपने बच्चों पर अपना प्रभाव खो देती हैं.बालक स्वच्छ वस्त्र पहनने वाली माताओं से अपनी माता की तुलना करते हैं और इस प्रकार उसके प्रति उनका आदर कम हो जाता है.ककेप 203.1

    ऐसी सच्ची पत्नी एवं माता हर्ष एवं आदरमय भाव में अपना कर्तव्य पूरा करेगी एक सुव्यवस्थित घर में जो भी आवश्यक समझा जावे उसे पूरा करने में वह अपनी मान हानि नहीं समझेगी.ककेप 203.2