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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    निदेशार्थ पौलुस का कलीसिया के पास भेजा जाना

    कितने लोगों का विचार है कि प्रकाश व अनुभव जो उन्हें प्राप्त हुआ है उसके लिये वे सीधे मसीह के उत्तरदायित्व हैं और संसार में उसके स्वीकृत शिष्यों से कोई सम्बंध नहीं रखते परन्तु मसीह ने इसका अपनी शिक्षाओं,उपदेशों तथा उदाहरणों द्वारा खंडन किया है-ये तथ्य उसने हमारी शिक्षा के लिये दिये हैं.यहां पर पौलुस है जिसे मसीह अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य के लिये योग्य बना रहा है जिसे उसके लिये एक चुना हुआ पात्र बनना था, वह सीधे मसीह के सन्मुख लाया गया फिर भी सत्य के पाठ वह स्वयं उसको नहीं सिखलाता. (मसीह )उसके रास्ते में हस्तक्षेप करता है और उसको दोषी ठहराता है और जब पौलुस प्रश्न पूछता है,“तू क्या चाहता है कि मैं करुं?’’सृष्टिकर्ता उसको प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं देता है परन्तु उसको अपनी कलीसिया के संसर्ग में लाता है.वे ही बतलाएंगे कि तुझे क्या करना है.यीशु पापियों का मित्रहै, उसका हृदय सर्वदा खुला है, सर्वदा मानव दु:ख से स्पर्शित होता है;उसको स्वर्ग में और पृथ्वी में पूर्ण अधिकार है;परन्तु वह उन साधनों का आदर करता है जो उसने मनुष्यों के ज्ञान व प्राण के लिये नियुक्त किये हैं.वह शावल को कलीसिया के पास भेजता है यों वह उस अधिकार को स्वीकार करता है जो उसने कलीसिया को जगत को प्रकाशित करने का साधन बनने के नाते प्रदान किया है.पृथ्वी पर वह कलीसिया मसीह का सुव्यवस्थित सम्प्रदाय है और उसकी संस्था का यथोचित सम्मान होना चाहिये.शावल के मामले में अननियाह मसीह का प्रतिनिधित्व करता है,वह मसीह के पृथ्वी पर के सारे अध्यक्षों का भी जो मसीह के स्थान पर नियुक्त किये जाते हैं प्रतिनिधित्व करता है.ककेप 102.4

    पौलुस के हृदय परिवर्तन में महत्वपूर्ण सिद्धान्त दिये गये हैं जिन्हें हमको सदैव ध्यान में रखना चाहिये.जगत का सृष्टिकर्ता अपनी सुव्यवस्थित तथा स्वीकृत कलीसिया की सम्पति के बाहर धार्मिक मामलों में किसी व्यक्तिगत अनुभव और व्यवहार की आज्ञा नहीं देता.ककेप 103.1

    परमेश्वर के पुत्र ने अपनी संगठित कलीसिया के पद तथा अधिकार के संग अपने को सम्मिलत कर दिया था.उसकी आशीर्षे उन्हीं साधनों द्वारा प्राप्त होंगी जिन्हें उसने नियुक्त किया है यों वह मनुष्य को उसी चश्मे से सम्बंधित करता है जिससे आशीषं बहती हैं.पौलुस पवित्र लोगों की अंत:करण के अनुसार सताने के कार्य में व्यस्त था पर जब परमेश्वर की आत्मा ने उसको उसके निर्दयी कार्य से ज्ञान कराया तो वह निर्दोष नहीं छूटा.उसको शिष्यों से शिक्षा करना था.ककेप 103.2

    कलौसिया के सारे सदस्यों को यदि वे परमेश्वर के पुत्र व पुत्रियां हैं तो जगत में उजयाला बनने से पूर्ण अनुशासनाधीन चलना होगा.परमेश्वर पुरुषों व स्त्रियों को प्रकाश का साधन कदापि न बनायेगा जब वे स्वयं अंधियारे में हैं और उसकी में रहने को संतुष्ट हैं प्रकाश के स्त्रोत से सम्पर्क रखने का कोई विशेष प्रयत्न नहीं करते.जो अपनी आवश्यकता को महसूस करते हैं और अपने को गहन विचार, उत्साह, धैर्यपूर्ण प्रार्थना और कार्य की ओर जागृत रखते हैं वे ही ईश्वरीय सहायता प्राप्त करेंगे.अपने में बहुत कुछ दूर करना होगा और बहुत कुछ सीखना भी होगा.पुरानी आदतें और प्रथाएं त्यागनी होंगी और इन गलतियों को सुधारने के हेतु केवल कड़े संघर्ष द्वारा तथा सत्य को पूर्ण रूप से ग्रहण करने द्वारा कि उसके सिद्धान्तों का ईश्वरीय कृपा से पालन कर के विजय प्राप्त हो सकती है.ककेप 103.3