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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अति निष्ठुर प्रशिक्षण का भय

    अनेकों कुटुम्बों में बालक जब तक अनुशासन के अन्तर्गत रहते हैं अपने आप को प्रशिक्षित बतलाते हैं पर उनको शासित रखने की प्रणाली का ज्यों ही अन्त हो या वे नियम ज्यों ही उनकी आंखों से ओझल हो जावे वे स्वंय विचार या कार्य के लिए फैसला करने के लिए अयोग्य ठहरते हैं.ककेप 250.6

    जब तरुण ऐसे कठोर प्रशिक्षण में हों जिसमें उसको अपनी मानसिक प्रवृतियों द्वारा अपना फैसला करने की योग्यता प्रदर्शित करने का अवकाश न हो जिससे उसकी विचार शक्ति,भावना व आत्मा सम्मान की उन्नति या किसी कार्य को पूरा करने की कार्यक्षमता पर विश्वास की बढ़ती न हो तो इससे केवल मानसिक और नैतिक शक्ति का अपहरण ही होगा.जब वे संसार के समक्ष व्यावहारिक क्षेत्र में प्रवेश करें तो वे इसी बात को प्रगट करेंगे.कि उनका प्रशिक्षण जानवरों की भांति हुआ है, उन्हें शिक्षा नहीं दी गई है.उनकी इच्छाओं को अगुवाई करने के बदले माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा उनको कठोर शासन के दबाव में रखा गया है.ककेप 250.7

    ऐसे माता-पिता व शिक्षक जो अपने अधीन रहने वाले वाले बच्चों के मन एवं इच्छा के ऊपर पूरा अंकुश लगाने का दावा करते है,यदि वे उन बालकों के भविष्य जीवन पर जिनको दबाव में रखा गया है,दृष्टिपात करें तो वे डोंग मारना भूल जायेंगे.वे बालक जीवन के निष्ठुर उत्तरदायित्व में योग देने के लिए तैयार न होंगे.वे शिक्षक जो अपने विद्यार्थियों की इच्छाओं को पूर्ण रीति से वश में रखने का दावा करते हैं सफल शिक्षक नहीं है,यद्यपि वह उस समय सराहनीय मालूम होता हैककेप 251.1

    वे बहुधा अपने आप को पराडमुख रखकर उदासीन सहानुभूति रहित रहते है जिससे वे अपने बालकों और विद्याथियों के हृदयों को जोत नहीं सकते.यदि वे बालकों को अपने समीप एकत्रित करें और यह बतलाकर कि उनको उनसे प्रेम है उनके खेल कूदों में सम्भागी हों.कभी कभी बालकों में बालक बनकर वे अपने बालकों को हर्षित करके उनके प्रेम तथा विश्वास को जीत लेंगे.बालक भी अपने माता-पिता के अधिकार के प्रति अपना प्रेम और आदर करेंगे.ककेप 251.2

    दूसरी ओर बालकों को अपने माता-पिता व शिक्षक के न्याय से स्वतंत्र भी नहीं छोड़ना चाहिए बालकों को शिक्षा दी जावे कि वे अपने माता-पिता और शिक्षकों के फैसले का आदर करें.बालकों को शिक्षा दी जावे कि माता पिता और शिक्षकों की सलाह को महत्व देने से उनके मन संगठित हो जावेंगे.जब वे अपने माता-पिता तथा शिक्षकों के हाथों से बाहर आगे बढ़े तो उनका चरित्र सरकंडे की भांति न होंगे जो हवर से हिलाया जा रहा हो.ककेप 251.3