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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    शैतान द्वारा प्रकृति को परमेश्वर ठहरने की योजना

    तत्व तथा प्रकृति के नियमों का वर्णन करते हुए बहुत से लोग,यद्यपि इन्कार नहीं करते, परमेश्वर के निरन्तर और सीधे साधन को दृष्टि से अलोप कर देते हैं.वे यह ख्याल पेश करते हैं कि प्रकृति परमेश्वर के बिना स्वाधीनता से काम करती है और अपने में काम करने की शक्ति रखती है.उनके ख्याल में प्राकृतिक और अप्राकृतिक में विशेष अन्तर है.प्राकृतिक के तो सामान्य कारण बतलाये जाते हैं और परमेश्वर की सामर्थ्य से कोई सम्बन्ध नहीं रखते.प्रदार्थ(तत्व)बड़ा शक्तिशाली बतलाया जाता हैं.और प्रकृति को देवी स्वरुप माना जाता है.ऐसा विचार किया जाता कि प्रदार्थ विशेष सम्बन्ध में रखा जाता है और अचल नियमों के अनुसार कार्यवाही करने के लिए छोड़ दिया जाता है जिन में परमेश्वर स्वयं भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता ;और कि प्रकृति को ऐसे विशेष गुण प्राप्त है और स्वाभाविक नियमों के अधीन रखी गई है,फिर उसे इन नियमों का पालन करने छोड़ दिया जाता है और उस कर्तव्य को समाप्त कर जिसके लिए शुरु में आज्ञा दी गई थी.ककेप 330.6

    यह मिथ्या विज्ञान है और परमेश्वर के वचन में उसका समर्थन करने के लिए कुछ सामग्री नहीं है,परमेश्वर अपने नियमों को लोप नहीं करता परन्तु वह निरन्तर उनके द्वारा काम करता है और उन्हें अपना अस्त्र स्वरुप प्रयोग करता है.परमेश्वर के प्राकृतिक नियम स्वयं कार्य करने वाले नहीं हैं.परमेश्वर प्रकृति में सदा व्यस्त रहता है.प्रकृति उसकी दासी है और जैसा चाहता है उसको चलाता है.प्रकृति अपनी कार्यशीलता में एक ऐसे प्राणी को सचेत उपस्थिति और सक्रियता की साक्षी देती है जो सारे कामों को अपनी इच्छानुसार चलाता है.प्रकृति के अन्दर कोई ऐसी निजी शक्ति उपस्थित नहीं है कि प्रतिवर्ष पृथ्वी अपनी पैदावार पैदा करे तथा सूर्य के इर्द-गिर्द भ्रमण करे.बल्कि एक असीम शक्ति का हाथ सर्वदा कार्यरत रहता हैऔर इस ग्रह का पथ प्रदर्शन करता है.यह परमेश्वर की शक्ति है जो क्षण क्षण में कार्य करती हैं कि वह पृथ्वी अपनी कीली पर घूमने के कार्य में तत्पर रहे.ककेप 331.1

    मानव देह की यंत्रकला पूर्ण रीति से समझ में नहीं आ सकतो;उसके रहस्यों की गुत्थी को चोटी के विद्धान भी नहीं समझ पाते.यह यंत्रकला का सा परिणाम नहीं है जो एक बार काम शुद्ध कर दिया जाय तो यह अपना कार्य जारी रखे कि नाड़ी खुद व खुद धड़कने लगे और एक सांस चलती रही.परमेश्वर ही में हम जीवित रहते हैं,चलते फिरते हैं और हमारा अस्तित्व है.हर सांस हृदय की धड़कन एक सर्वव्यापक परमेश्वर की शक्ति का निरन्तर प्रमाण है.ककेप 331.2

    धुरंधर विद्धान यहोवा परमेश्वर के रहस्यों को जिस प्रकार वे प्रकृति में प्रदर्शित हैं समझ नहीं सकते.ईश्वरीय प्रेरणा अनेक ऐसे प्रश्न पूछती है जिनका तीक्ष्ण बुद्धि पण्डित भी उत्तर नहीं दे सकते.ये प्रश्न इस लिए नहीं पूछे गये कि हम उनका उत्तर देवें परन्तु इस लिए कि परमेश्वर के गहन रहस्यों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें और हमें सिखलाएं कि हमारा ज्ञान सीमित है,कि हमारे दैनिक जीवन के चारो ओर बहुत सी बातें हैं जो सीमाबद्ध बुद्धि की समझ से परे हैं कि परमेश्वर के विचार कैसे अथाह और उसके मार्ग कैसे अगम्य हैं.उसकी बुद्धि अपरंपार है. ककेप 331.3

    जो शिक्षा का कार्य यहां आरम्भ किया गया है उसकी समाप्ति इस जीवन में नहीं हो सकती;यह तो अनन्तकाल तक जारी रहेगा,बढ़ता ही रहेगा और कभी समाप्त हो न होगा.परमेश्वर के आश्चर्यजनक कार्य,सृष्टिरचना और उसके सम्भालने में उसकी अद्भुत शक्ति के प्रमाण दिन नये सौन्दर्य में मस्तिष्क के सामने खुलेंगे.सिहासन से चमकते हुए प्रकाश में सारे रहस्य लोप हो जायेंगे और आत्मा उन बातों की साधारणता को देखकर आश्चर्यचकित रह जायगी जो इससे पूर्व समझ में नहीं आई थी.ककेप 331.4