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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अध्याय 15 - गलती करने वाले से व्यवहार

    मसीह इस लिये आया कि सब उद्धार पा सके.कलवरी के क्रूस पर उसने खोई हुई संसार को कैद से छुड़ाने की असीम चुकाई.अपने आत्मत्याग तथा आत्मबलिदान अपने निस्वार्थ परिश्रम अपनी दीनता सर्वोपरि अपने जीवन को निसार कर देने से उसने पतित मानव के प्रति अपने प्रगाढ़ प्रेम की साक्षी दी है.वह खोये हुओं को ढूंढने और बचाने इस दुनिया पर आया था.उसकी सेवा ने पापियों के लिए मूल्य चुकाया कि उनकी ढूंढ़ कर वह अपनी सहानुभूति तथा मेल में ले आवे.अति पापी व अपराधी की भी उसने उपेक्षा न की जिनके लिए उसके उद्धार की आवश्यकता थी उसी के लिए वह विशेष कोशिश करते थे.जिन लोगों को त्राण की अत्यन्त आवश्यकता थी उसका परिश्रम खास तौर उन्हीं के लिए था, उनको सुधार की जितनी अधिक आवश्यकता थी उतना ही अधिक उनके दिलचस्पी उनके लिए होती,उतना ही अधिक उसकी सहानुभूति और उतना ही अधिक उनके लिए परिश्रम करना था उसका प्रेम से भरपूर हृदय उनके लिए पसीज जाता था जिनकी स्थिति अति सोचनीय हो गई थी और जिन्हें परिवर्तन करने वाले अनुग्रह की अति आवश्यकता थी,उनके प्रति उसके हृदय का प्रेम अधिक उमड़ जाता था.लेकिन परीक्षा में पड़े हुओं तथा अपराधियों के लिए हम लोगों में गहन उत्साहपूर्ण हृदयस्पर्शी सहानुभूति और प्रेम की भारी और प्रेम की भारी कमी है.बहुतों ने बड़ी रुखाई तथा अपराधमय अवहेलना दिखलाई है जिनको मसीह ने बतलाया कि मानो वे कतरा कर दूसरी ओर निकल गये और उनसे जिन्हें मदद की जरुरत है बहुत दूर हो गये. नवजात आत्मा को पुरानी आदतों से अथवा किसी विशेष प्रकार के प्रलोभन से भंयकर युद्ध करना पड़ता है और तीव्र अभिलाषा अथवा लत द्वारा परास्त हो कर वह अविवेक अथवा वास्तविक के अपराध का दोषी ठहरता है तब ऐसे समय में भाइयों की ओर से शक्ति,सूक्ष्म विचार तथा बुद्धि की आवश्यकता है ताकि उसके आत्मिक स्वास्थ्य का सुधार हो. ऐसी स्थिति में परमेश्वर का वचन लागू होता है,“हे भाइयों ! यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो,नम्रता के साथ ऐसे को संभालो,और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो. (गलतियों 6:1) “निदान हम बलवानों को चाहिये,कि निर्बलों को निर्बलताओं को सहें;न कि अपने आप को प्रसन्न करें.’’(रोमियों 15:1)ककेप 116.1

    कोमल व्यवहार, कोमल उत्तर और मृद्ध वाणी,सुधार के लिए कठोरता और कड़ेपन की अपेक्षा अधिक उपयुक्त है. हद से ज्यादा कठोरता लोगों को आपकी पहुँच से बहुत दूर भगा डालेगी जब कि मिलनसार भावना द्वारा वे आप की ओर खींचे चले आवेंगे उनको आप तभी सही रास्ते पर स्थापित कर सकेंगे.आप को क्षमा की भावना से प्रेरित होना चाहिये और अपने आस-पास के निवासियों के यथोचित अभिप्राय तथा कार्य को यथायोग्य सम्मान देना चाहिये.ककेप 116.2