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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    कलीसिया न माननेवालों की और उसका कर्तव्य

    कोई कलीसिया का अध्यक्ष यह परामर्श न दे न कोई पंचायत यह सिफारिश करे,न मंडली सदस्य इस प्रकार मत (वोट)दें कि अमुक अपराधी का नाम कलीसिया की पुस्तकों से काट दिया जाय जब तक कि मसीह के दिये हुये आदेशों का पूर्ण रीति से पालन न किया जाय.जब इस आदेश का भली भांति पालन किया जाय तो मंडलो ने अपने आप को परमेश्वर के सामने निर्दोष ठहरा लिया है. तब बुराई को उसके यथार्थ रुप में प्रकट कर के हटा दिया जाय ताकि वह अधिकता से न फैलने लगे.मंडली के स्वास्थ्य तथा पवित्रता की रक्षा करनी चाहिये ताकि परमेश्वर के सामने निर्दोष,मसीह की धार्मिकता के वस्त्र पहिने खड़ी रह सके.ककेप 119.5

    यदि गलती करने द्वारा पश्चाताप करता है और मसीही सुधार की अधीनता ग्रहण करता है तो उसको दूसरा अवकाश देना चाहिये.और यदि वह पश्चाताप न करे और फिर भी वह कलीसिया के बाहर हो रहे तो परमेश्वर के दासों को उसके लिए फिर भी कोशिश करनी चाहिये.उनको उत्साहपूर्वक चेष्टा करनी चाहिये कि उसे पश्चाताप को आत्मा प्राप्त हो.चाहे उसका अपराध कितना ही भंयकर क्यों न हो यदि वह पवित्रआत्मा के कड़े परिश्रम की अधीनता स्वीकार करता है और अपने अपराध को मान लेने तथा उसे छोड़ देने से पश्चाताप का प्रमाण देता है तो उसे क्षमा देकर फिर मंडली में स्वागत करना चाहिए. भाइयों को उसे सत्यपथ पर चलने को प्रोत्साहन देना चाहिए.उसके संग ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा व्यवहार स्वयं अपने साथ चाहते यदि वे उसकी जगह पर होते और अपना भी ख्याल रखे कहीं वे इसी प्रकार के इम्तिहान में स्वयं न पड़ जायं.ककेप 120.1

    मसीह ने कहा, ‘’मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे,वह स्वर्ग में बाँधेगा और जो कुछ पृथ्वी पर खोलोगे,वह स्वर्ग में खुलेगा.’’(मत्ती 18:18)ककेप 120.2

    यह उचित सारे युगों में खटती है.मंडली को मसीह के स्थान पर कार्य करने का अधिकार दिया गया है.यही परमेश्वर का आश्रम जिसके द्वारा उसके लोगों के बीच नियम और अनुशासन सुरक्षित रहता है.उसी को परमेश्वर ने अधिकार दिया है कि अपनी कार्यकुशलता,पवित्रता तथा नियम सम्बन्धी प्रश्नों के प्रति अपना निर्णय दे.उन निकम्मे सदस्यों को मंडली से निकालने का दायित्व उन्हों पर रखा है जो अपने मसीह धर्म के विपरीत चाल चलन से सत्य को कलंकित करते हैं.परमेश्वर के वचन में दिये गये आदेशों के अनुसार मंडली जो कुछ भी करती है वह स्वर्ग में स्वीकृत किया जाएगा.ककेप 120.3

    गम्भीर से गम्भीर मामलात कलीसिया के सामने तय होने को लाए जाते हैं.परमेश्वर के सेवक तो उसके लोगों के मार्गदर्शक होने के लिए अभिषिक्त किये गये हैं अपना कर्तव्य पूरा करने के बाद सम्पूर्ण मामले को मंडली को सौंप देते हैं ताकि उस फैसले में एकता पाई जावे. ककेप 120.4

    परमेश्वर की अभिलाषा है कि उसके अनुयायी एक दूसरे के साथ व्यवहार करने में बड़ी सावधानी बरतें.उत्थान करने का, बहाल करने का, और घाव को चंगा करने का उनका काम है.परन्तु मंडली में उचित ताड़ना की अवहेलना नहीं होनी चाहिये.मंडली के मेम्बरों को अपने को पाठशाला के विद्यार्थियों की भाँति समझना चाहिए जो यह सीखने की कोशिश कर रहे हैं कि उच्च बुलाहट योग्य अपने चाल चलन को बनावें.जागतिक कलीसिया में होते हुए परमेश्वर की संतान को स्वर्गीय मंडली के संग पुनः संयोग के लिए तैयारी करनी चाहिए.जो यहां मसीह के संग मेल से रहते हैं वे मोक्ष पाये हुओं के परिवार में अनन्त जीवन की आशा कर सकते हैं.ककेप 120.5