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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अध्याय 57 - सरकारी शासनकर्ताओं तथा कानूनों से

    हमारा सम्बंध सरकारी अधिकारियों की ओर विश्वासियों का कैसा भाव होना चाहिए.उसकौ रुपरेखा प्रेरित ने स्पष्टता से खींच दी है.’’प्रभु के लिए मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबंध के अधीन में रहो,राजा के लिए कि वह सब पर प्रधान है.और हाकिमो के, क्योंकि वे कुकर्मियों के दंड देने और सुकर्मियों की प्रशांसा के लिए उसके भेजे हुए हैं.क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निबुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बंद कर दो, और अपने आप को स्वतंत्र जानों पर अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिए आड़न बनाओ परंतु अपने आपको परमेश्वर के दास समझ कर चलो.सब का आदर, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो,राजा का सम्मान करो.’’(1पतरस 2:17)ककेप 320.1

    हमारे ऊपर शासनकर्ता हैं और लोगों पर शासन करने के हेतु नियम व कानून हैं.यदि नियम न होते तो संसार की दशा इससे भी बुरी होती जो अब है कुछ नियम अच्छे हैं अन्य बुरे हैं.बुरे नियम बढ़ते जा रहे हैं और हम और भी तंग जगह में लाये जायेंगे.परन्तु परमेश्वर अपने लोगों को दृढ व अटल रहने में और उसके वचन के नियमों पर चलने में सहायता करेगा.ककेप 320.2

    मैंने देखा कि हर हालत में हमारा कर्तव्य है कि अपने देश के नियमों का तब तक पालन करें जब तक वे उस उच्च नियम से संघर्ष नहीं करते जिसे परमेश्वर ने सीनै पर्वत से ऊंची आवाज से पुकारा और पद्पश्चात् उसको अपनी ही अंगुली से पत्थर पर कन्दा कर दिया.’’मैं अपनी व्यवस्था को उनके मन में डालूंगा और उसे उनके हृदय में लिखंगा और मैं उनका ईश्वर हूंगा और वे मेरे लोग होंगे.’‘ जिसके हृदय में परमेश्वर की व्यवस्था लिखी है वह मानव के हुक्म की वनिस्बत परमेश्वर की आज्ञा मानेगा और शीघ्र ही सारे लोगों कीअवज्ञा करेगा परन्तु परमेश्वर की व्यवस्था मानने के किंचित भी न हटेगा.सत्य की प्रेरणा से सिखाए गए परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन-यापन के लिए शुद्ध अत:करण द्वारा नेतृत्व किए हुए परमेश्वर के लोग उनके हृदय में लिखी व्यवस्था को एक मात्र अधिकार के रुप में स्वीकार करेंगे अथवा मानने को राजी होंगे.ईश्वरीय व्यवस्था की विद्वता व अधिकार सर्वोच्च हैं.ककेप 320.3

    जिस शासनाधीन यीशु रहता था वह भ्रष्ट और निर्दयी थी;हर तरफ अन्याय ही अन्याय था, लूट,खसोट, हठधर्मी औरकठोर अंधेर था.तो त्राणकर्ता ने कोई राजनीतिक सुधार नहीं किया.उसने राष्ट्रीय अन्याय पर कोई आक्रमण नहीं किया,न राष्ट्रीय शत्रुओं की निन्दा ही की उसने अधिकारियों अथवा राज्य शासन वालों के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया.जो हमारा नमूना था वह पार्थिव शासन से पृथक रहा.ककेप 320.4

    बार-बार यीशु से विनती की गई कि वह कानूनी तथा राजनीतिक प्रश्नों को हल करे.परन्तु उसने सांसारिक मामलों में हस्ताक्षेप करने से इन्कार किया.मसीह हमारी दुनिया में आध्यात्मिक धार्मिकता का राज्य का जिसे वह स्थापन करने आया था सरदार बनके आया.उसकी शिक्षा ने उन उच्च करने वाले और पवित्र करने वाले सिद्धान्तों को नष्ट कर दिया जो उसके राज्य को सम्भाले हुये हैं.उसने प्रत्यक्ष कर दिया कि न्याय और प्रेम यहोवा के राज्य की नियंत्रण करने वाली शक्तियां हैं.ककेप 321.1

    जासूस उसके पास प्रत्यक्ष में निष्कपट हृदय से आये मानो वे अपने कर्तव्य के बारे में जानना चाहते थे,उन्होंने कहा, ‘’हे गुरु, हम जानते हैं कि आप यथार्थ कहते और सिखाते हैं और पक्षपात नहीं करते हैं परन्तु ईश्वर का मार्ग सत्यता से बताते हैं.क्या कैसर को कर देना हमें उचित है अथवा नहीं?’‘ककेप 321.2

    मसीह का उत्तर गोलमोल नहीं था परन्तु प्रश्न का खरा उत्तर था. अपने हाथ में एक रोमी सिक्का लिया जिस पर कैसर का नाम तथा मूर्ति छपी थी और घोषणा की क्योंकि वे रोमी राज्य के सरंक्षण में रहते थे,इस लिए तब तक उन्हें उस शासन को सहारा देना चाहिये जब तक यह श्रेष्ठ कर्तव्य कर्म में बांधा न डाले.ककेप 321.3

    जब फरीसियों ने मसीह का उत्तर सुना,तो “यह सुनके आचम्बित हुये और छोड़ के चले गये.’’उसने उनके कपट और कल्पना की निन्दा की और ऐसा करने में उसने एक महान सिद्धान्त को स्पष्ट किया,ऐसा सिद्धान्त जिस से मानवी कर्तव्य की सीमा सरकार की ओर और परमेश्वर की ओर स्पष्ट प्रदर्शित होती है.ककेप 321.4