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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    माता-पिताओ बच्चों के उद्धार कार्य में सह-उद्योगी बनिये

    दैनिक कार्य पर जिस रुप में परमेश्वर दृष्टिपात करता है यदि माता-पिता भी अपने दैनिक कार्य का अनावरण करके देख सकते,यदि यह हो सके तो उन्हें विदित हो जावेगा कि दोनों कार्यकर्ताओं के कार्यों की तुलना कैसी है.और दिव्य प्रगटीकरण से उनको बड़ा आश्चर्य होगा.पिता एक सुशील प्रकाश में अपने परिश्रम पर दृष्टिपात कर सकेगा.माता भी साहस एवं शक्ति से पूरित होकर बुद्धि,सहन शीलता एवं धीरज से अपनी सेवा में संलग्न होगी.अब वह उसके मूल्य से परिचित है.अब पिता का व्यापार उन वस्तुओं से है जो अनित्य एवं नाशमान हैं पर माता बालकों के मानसिक विकास एवं चरित्र निर्माण में कार्यशील होकर न केवल वर्तमान समय के लिये ही उचित अनन्त काल के लिए सेवा में संलग्न है.ककेप 204.1

    बालकों के प्रति पिता का कर्तव्य माता के कन्धों पर लादा नहीं जा सकता.यदि माता अपना कर्तव्य भली भांति पालन करे तो उसका ही भार उसके लिए पर्याप्त है.ईश्वर ने जो काम माता पिता के हाथ में सौंपा है उसे वे संगठित रुप से सहयोगी होकर ही सम्पन्न कर सकेंगे.ककेप 204.2

    इस जीवन एवं अनन्त जीवन निमित्त,अपने बालकों को शिक्षा कार्य में पिता को पीछे नहीं हटना चाहिए. इस उत्तर दायित्व को पूरा करने में पिता चाहे कि उनकी सन्तान सद्गुण सम्पन्न हो तो उन्हें आपस में एक दूसरे के प्रति प्रेम एवं आदर का व्यवहार करना चाहिए.ककेप 204.3

    लड़कों का पिता अपने पुत्रों के साथ घनिष्ट सम्पर्क स्थापित करके हृदय आलिंगन करने हारी साधारण एवं विनम्र भाषा में अपने अनुभव का वर्णन करके बालकों को लाभ पहुंचावे. वह उन्हें इस बात का बोध होने दे कि उसे सदैव अपनी सन्तान के प्रति सर्वश्रेष्ठ रुचि एवं आनन्द का विशेष ध्यान है.ककेप 204.4

    वह जिसके कुटुम्ब में लड़के हैं इस को समझ ले कि उसका धन्धा जो हो वह उसकी रक्षा में सौंपी हुई आत्माओं के प्रति उदासीन भाव या प्रदर्शन न करें.उसी के द्वारा इन बालकों ने संसार में जन्म पाया है, इस कारण परमेश्वर की ओर से उसे यह उत्तरदायित्व मिला है कि वह उन्हें अपवित्र संगीत एवं दुष्ट साथियों से बचाए रखने में प्रत्यन शील हो.वह अपने चंचले बालकों को माता की ही रक्षा मात्र में न छोड़े.माता के लिए यह भार असहायक है.माता एवं बालकों को जिन बातों में सम-रुचि है पिता उनके लिए उनकी व्यवस्था करे.बुद्धिमानी के साथ अपनी सन्तान के प्रशिक्षण में आत्मा शासन का प्रयोग करना माता के लिए कठिन होगा.यदि ऐसा ही है तो पिता अधिकाशं कार्यभार अपने ऊपर ले लें.अपनी सन्तान के उद्धार निमित्त उसे निश्चयात्मक प्रयत्नशील होने का संकल्प करना चाहिए.ककेप 204.5