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कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
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    अनुचित आचरण

    हृदयों के साथ खिलवाड़ करना पवित्र परमेश्वर की दृष्टि में महान पाप है.तौभी कई युवक-युवती महिलाओं को प्रोत्साहित करके उनके प्रेम को जीत कर उन्हें अकेली छोड़ देते हैं मानो कुछ ही नहीं या उन्होंने कुछ कहा ही नहीं था.एक नया मुखारविन्द उनको आकर्षित करता है और वे उस व्यक्ति के साथ भी वे शब्द काम में लाकर वही व्यवहार करते है.ककेप 177.3

    यहा मनोवृति विवाहोपरान्त प्रकट हो जाती है.विवाह सम्बन्ध डगमगाते हुए मन को स्थिर नहीं कर सकता,न वह भटकते हुए को स्थिर कर के सत्य सिद्धान्त प्रेमी बना सकता है.वे निश्चलता से थक जाते हैं उनके अपवित्र विचार व्यवहार में प्रकट होते हैं.इस कारण यह कितना आवश्यक है कि युवक अपने मन को स्थिर करके अपनी चाल की चौकसी करें कि धार्मिक मार्ग से डिगाने में शैतान सफल न हो. ककेप 177.4

    कोई जवान जो माता-पिता को इसका संकेत किए बिना किसी युवती से सम्पर्क रख कर उसकी संगति का लाभ उठाना चाहता है तो ऐसा करना उस युवती अथवा उस के माता-पिता के प्रति मसीही आचरण के विरुद्ध कार्य है पवित्र सभा व सम्पर्क के द्वारा वह उनके मन पर अपना अधिकार जमाकर जब व्यावहारिक क्षेत्र में आवे तो वह उस आत्मिक पूर्णता एवं पवित्रता को भूल जाता है जो परमेश्वर को सन्तान में होना चाहिए.अपना मतलब गांठने के लिए वह बाइबल में दर्शाए गए मानदण्ड के अनुसार साफ और सीधा व्यवहार नहीं करता है.ऐसा करके वह उसके प्रेमी सरंक्षकों के प्रति विश्वास घात करता है.वह जो अपनी पुत्री को उसके कर्तव्य पालन से भटकावें, जो उससे माता-पिता की आज्ञा का पालन के प्रति परमेश्वर स्पष्ट तथा निर्दिष्ट आदेश की अवहेलना करावे वह वैवाहिक दायित्वों के प्रति कभी विश्वास योग्य न रहेगाककेप 177.5

    “चोरी मत कर’’यह पत्थर की पटिया पर परमेश्वर ने अपनी उंगली से लिखा था.प्रेम की चोरी जो आजकल होती है किस प्रकार क्षमा होगी.धोखामय अनुराग गुप्त व्यवहार द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को  प्रेमानुभाव जानता ही नहीं न जिसको उसके परिणामों का बोध हैं उसके माता-पिता से अलग करते हैं स्वयं प्रमाणित करता है कि वह उसके प्रेम का पात्र नहीं है.बाइबल हर प्रकार की बेइमानी को दोषी ठहराती है.ककेप 177.6

    मसीह लोग जिनके जीवन पर खराई की छाप है, जो प्रत्येक विषय के प्रति समझदार है इस विषय में भयानक भूल करते हैं.वे एक निश्चयात्मक स्थिर आत्मा का प्रदर्शन करते हैं जिसे तर्क बदल नहीं सकता.वे मानुषिक भावना और आवेगों के ऐसे वशीभूत हो जाते हैं कि पवित्रवचन को जाँच कर परमेश्वर की सहभागिता में आना नहीं चाहते.ककेप 178.1

    जब दस आज्ञाओं की एक आज्ञा तोड़ी जाती है तो अवन्नति अवश्य है.जब स्त्रीत्व की मर्यादा की एक सीमा हटा दी जावे तो फिर निम्नतर कोटि की लालसा अनन्त पापमाय प्रतीत नहीं होती.हाय! आज संसार में स्त्री जाति के प्रभाव के कैसे भयंकर परिणाम देखने में आते हैं.अपरिचित स्त्रियों से आकर्षित होकर सहसों बन्दी गृहों में पड़े हैं.ऐसे लोग अपना प्राण लेते व अनेकों दूसरों का प्राणघात करते हैं.प्रेरित का वचन कितना सत्य है उसके पाँव मृत्यु की ओर फिसलते हैं, उसके पग नरक में ले जाते हैं.’‘ ककेप 178.2

    भंयकर वर्जित भूमि में पदार्पण करने से रोकने की चितावनियां जीवन मार्ग में जहाँ तहाँ पाई जाती पर इनके रहते हुए भी झुंड के झुंड विवेक के प्रतिकूल परमेश्वर की व्यवस्था निश्चित होकर, उसके दण्ड का तिरस्कार कर के काल के गाल में जाना पसंद करते हैं. ककेप 178.3

    वे जो शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करना चाहें या बुद्धि को शक्ति शाली बनाए रखना चाहे जो नैतिक रुप में सिद्ध रहना चाहें उन्हें जवानी की अभिलाषाओं से भागना चाहिए.दुष्ट मार्ग में चलने हारे उनका सामना करके भला बुरा कहेंगे.जो लोग अपने बीच अपराध को उमड़ती हुई धार को रोकने की उत्साहपूर्ण तथा जी तोड़ कोशिश करेंगे उनकी दुराचारियों द्वारा घृणा तथा निदा की जाएगी परन्तु परमेश्वर उनका सम्मान कर के प्रतिफल देगा.ककेप 178.4