Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents
कलीसिया के लिए परामर्श - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    आलस्य की बुराई

    मुझे यह बतलाया गया है कि सुस्ती के परिणाम स्वरुप कितने पाप पैदा होते हैं.कार्य व्यस्त हाथ और मस्तिष्क को अवकाश नहीं कि दुश्मन द्वारा प्रस्तावित परीक्षाओं पर विचार करे.आलसी हाथ और मस्तिष्क तैयार हैं कि शैतान उन पर अधिकार जमा ले.मन यदि उचित कार्यों में लगा न हो तो अनुचित बातों में विचारता है.माता-पिता अपनी सन्तान को सिखलाने कि आलस्य पाप हैं.ककेप 252.3

    बालकों पर से कार्य का भार उठाकर उन्हें के लिए छोड़ देने से बढ़कर कोई अन्य बात नहीं हैं जो उनके पतन का बड़ा कारण हो सके.बालकों के मन चंचल होते हैं यदि वे उत्तम और लाभदायक बातों में व्यस्त न रहें तो निश्चय वे बुराई की ओर अग्रसर होंगे.उनके लिए मनोरंजन का होने तो आवश्यक है पर उन्हें काम करना सिखलाया जावे.उनके लिए शारीरिक श्रम के अवसर हों जिनके साथ-साथ पढ़ने का भी अवसर हो.ध्यान में रहे कि उनकी अवस्था के अनुसार उनका कार्य हों और पुस्तकें जो दी जावें वे लाभप्रद तथा मनोरंजक हों.ककेप 252.4

    बालक बहुधा किसी को बड़े जोश से आरम्भ करते हैं बाद में वे उसमें चिन्तित होकर घबरा जाते हैं.वे चाहते हैं उसे बदलकर कोई अन्य कार्य ले लें.इस प्रकार सम्भव है कि वे अनेकों बातों में हाथ लगा कर निराशा का सामना करने पर उन्हें छोड़ दें.इस प्रकार वे एक बात से दूसरी पर कूदें और किसी कार्य को सिद्ध न कर सके.माता-पिता सावधान रहें कि बदलाव की अभिलाषा से उनकी सन्तान प्रभावित न हो.वे अनेकों ऐसी बातों से कस न जावें जिसके फलस्वरूप वे अपने प्रगतिशील मस्तिष्क का धैर्य पूर्ण शासन न कर सकें.जब वे निराशा का सामना करें तो तसल्ली के एक शब्द को उचित समय पर कहने से उनकी भारी सहायता हो सकेगी इससे उन्हें अमुक कार्य को पूरा करने का आनन्द प्राप्त होगा और दूसरा कठिन कार्य हाथ में लेने की प्रेरणा भी मिलेगी.ककेप 252.5

    जिन बच्चों को अधिक लाड़ दुलार से पाला गया है और उनकी सारी इच्छाएं पूरी की गई हैं वे सदा इसी प्रकार के व्यवहार की आशा करते हैं.जब उनकी आशाओं पर पानी फिर जाता है तो वे निराश हो जाते हैं.ककेप 253.1

    यह मनोभाव जीवन पर उनके साथ होता है.वे सदा असहाय रहकर दूसरों की सहायता की बाट देखकर चाहेंगे कि दूसरे सदा उनका विरोध किया जावे तो सियाने होने पर भी वे सोचते हैं कि उनका अपमान किया गया है.इस प्रकार वे संसार में फ्रिक करते रहते हैं और अपना निज भार उठाने में असमर्थ होते हैं.इस कारण कि संसार की प्रत्येक बात उनके अनुकूल नहीं हैं.वे सदा कुड़कुड़ाते रहते हैं.ककेप 253.2

    जब कोई स्त्री अपना और अपने परिवार का भी काम करती हैअर्थात् लकड़ी-पानी लाती और स्वयं कुल्हाड़ी लेकर चूल्हे के लिए लकसिड़यां काटती है जब कि पति तथा पुत्र आग के पास बैठ कर मौज करते हैं तो वह ऐसी कार्यवाही से अपने को तथा परिवार को भारी नुकसान पहुँचा रही है,परमेश्वर का यह अभिप्राय नहीं था कि पत्नियाँ घर के गुलाम हों.जब बालकों को घर के काम में भाग लेने की शिक्षा न दी जावे तो मां पर चिन्ता का अधिक भार रहता है.इसके परिणामस्वरुप जल्दी बूढ़ी होकर समय के पूर्व मर जाती है.जब बालकों को माता की अधिक आवश्यकता हो तब वह उन्हें छोड़कर चल बसती है.इसका दोष किस पर हो?ककेप 253.3

    पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को चिन्ताओं में फंसने से बचाने का भरसक प्रयत्न करे. वह उसे सदा प्रसन्नचित रखें, बालकों को आलसी बनने का अवसर न दिया जावे क्योंकि इसकी आदत जल्दी बन जाती है.ककेप 253.4